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खास बातचीत: ​लारा दत्‍ता ने बताया-पहले बतौर प्रोड्यूसर लोग मुझसे बजट-बिजनेस पर बातें नहीं करते थे, अब उस मुद्दे पर ​​​​​​​फीमेल प्रोड्यूसर्स को सीरियसली लेने लगे हैं

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  • Lara Dutta Said – Earlier As A Producer People Did Not Talk To Me On Budget business, Now On That Issue The Female Producers Are Being Taken Seriously

मुंबई10 मिनट पहलेलेखक: अमित कर्ण

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बॉलीवुड में एक सफल पारी खेल चुकीं पूर्व मिस यूनिवर्स लारा दत्ता ने एक बार फिर जोरदार वापसी की है। हाल ही में अक्षय कुमार के लीड रोल वाली फिल्म ‘बेल बॉटम’ में निभाए इंदिरा गांधी के किरदार के लिए लारा को काफी तारीफ मिली है। इसके लिए उन्हें कुछ दिन पहले आयोजित हुए दादा साहेब फाल्‍के इंटरनेशनल अवॉर्ड्स में बेस्‍ट सपोर्टिंग एक्‍ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला है। अब दैनिक भास्कर से खास बातचीत में लारा ने अवॉर्ड मिलने की खुशी और जज्‍बात जाहिर किए हैं। साथ ही अपने प्रोड्यूसर बनने और करियर से जुड़ी कई बातें भी शेयर की हैं।

आप जब फिल्‍म प्रोड्यूसर बनीं थीं, तो उस वक्‍त के क्‍या इनिशियल चैलेंजेज थे और अब क्‍या राहें आसान हुई हैं?
धीरे धीरे, थोड़ी-थोड़ी आसान तो हो चुकी हैं। साल 2011 में मैं जब प्रोड्यूसर बनीं थीं तो उस वक्‍त शायद और कोई दूसरी प्रोड्यूसर नहीं थी। तब लोग मुझसे क्रिएटिव बातें करने को तो राजी रहते थे, मगर बिजनेस के मसलों पर वो बातें नहीं करते थे। उन्‍हें लगता था कि हम औरतों को पता नहीं कि बिजनेस क्‍या होता है। अब ऐसा नहीं हैं। दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, कंगना रनोट सब प्रोड्युसर बन चुकी हैं। आज की तारीख में मैं लोगों से बिजनेस की बातें भी कर सकती हूं और वो मुझे सीरि‍यसली लेते भी हैं।

आपसे बार-बार पूछा जा रहा होगा, अवॉर्ड मिलने पर कैसा लग रहा है?
लग तो बहुत बढ़ि‍या रहा है। दो वजह हैं। एक तो इसलिए कि हम फिर से ऐसे अवॉर्ड फंक्‍शन का हिस्‍सा बन सके, जो नॉर्मल और फिजिकल था, जहां हम खुद जाकर अपने अवॉर्ड स्‍वीकार कर रहे थे। यह हमारी इंडस्‍ट्री के लिहाज से बहुत सही चीज थी। हमारी जैसी इंडस्‍ट्री है, उसके लिए एक दूसरे से मिलना और ऐसे आयोजनों को सेलिब्रेट करना बहुत जरूरी था। दूसरी चीज एक एक्‍टर या एक्‍ट्रेस के लिए करियर में अपने काम के लिए तारीफ मिलना बेहद फुलफिलिंग चीज होती है।

ऑस्‍कर के दायरे में बॉलीवुड फिल्‍में कम रही हैं, वो कसक कैसी लगती है?
मैं तो यही कहूंगी कि ‘इट्स जस्‍ट ए मैटर ऑफ टाइम’। अब ग्‍लोबल मंचों पर जितनी रिकग्‍निशन हो रही है इंडियन एक्‍टर्स की, वो पहले के मुकाबले यकीनन बहुत ज्‍यादा है। नेटफ्ल‍िक्‍स का जो विदेशी विंग है, उसने इंडियन कहानी ‘द व्‍हाइट टाइगर’ पर फिल्‍म बनाई। ऐसे और भी प्रोजेक्‍ट बनें, जो ओरिजिनेट इंडिया से हुए, पर उनकी अपील ज्‍यादा यूनिवर्सल हैं। मुझे उम्‍मीद है कि ऑस्‍कर की तरफ से इंडियन रिप्रेजेंटेशन भी बढ़ेगा।

ओटीटी कैसे और क्‍यों ज्‍यादा फीमेल सेंट्रिक कहानियां ला रहा है, जो शायद बॉलीवुड या हमारी इंडियन फिल्‍में कम कर सकी हैं?
ओटीटी आने के बाद से फीमेल सेंट्रिक कंटेंट के लिहाज से बदलाव तो आए हैं। महिलाओं की एक बड़ी तादाद प्रोड्यूसर, राइटर, कैमरा पर्सन और डायरेक्‍टर बन रही हैं। पहले 35 से 55 साल की फीमेल के लिए बहुत लिमिटेड अपॉर्च्युनिटीज थीं। टीवी पर फीमेल एक्‍टर और ऑडिएंसेस के लिए सिर्फ सास-बहू वाले कंटेंट थे। 35 से 55 ऐज ग्रुप वालीं एक्‍ट्रेसेस या तो पतिव्रता नारी हो सकती थीं या परिवार के लिए अपनी सारी खुशियां त्‍यागने वाली मां हो सकती थीं। ओटीटी अब उनकी अपनी खुशियों और ख्‍वाहिशों वाले कंटेंट दे रहा है। साफ सुथरी फैमिली कंटेंट के तौर पर ‘कौन बनेगा शिखरवति’ मैंने खुद किया था। वो पूरी फैमिली के साथ आप देख सकते हैं। अगर आप को बोल्‍ड स्‍पेस में देखनी है तो आप के पास ‘हिकअप्‍स और हुकअप्‍स’ हैं, जो 40 प्‍लस और तलाकशुदा महिलाओं के मसले एड्रेस करती है। यह मेरे करियर का सबसे अच्‍छा फेज है। मुझे अपनी पसंद का कंटेंट मिल रहा है।

अपने आसपास और वर्क प्‍लेसेज पर महिलाओं को जो कंप्‍लीट सुरक्षा का माहौल हम नहीं दे सके हैं, वो महिला सशक्तिकरण की राह में कितना बड़ा रोड़ा है?
आज की जो युवतियां हैं, वो ऐसी चुनौतियों के सामने झुकने वाली नहीं हैं। वरना पहले के समाज की जो औरतें थीं, उनकी तब की कंडीशनिंग के चलते आवाजें दबी हुईं थीं। मौजूदा पीढ़ी अपनी आवाज दबने देने के लिए रेडी नहीं है। मसलन, मेरी सोच मेरी मां से अलग है। मैं अपनी बेटी की जो परवरिश कर रही हूं या जो उसे हौसला देती रहती हूं, वह बिल्‍कुल अलग है। पहले हमारा समाज औरतों से अन्‍याय के खिलाफ कुछ कहने से मना कर देता था। ये तुम अकेली औरत नहीं हो, जिसके साथ ऐसा होता है, यह सब सुनने को मिलता था। अब यह सब हटने लगी है। फिर भी मेरे ख्‍याल से हमारी लड़कियों को फ्री एजुकेशन का मौका मिले। उससे सशक्तिकरण होगा।

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