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खास बातचीत: संजय लीला भंसाली की वकील बोलीं- फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में गंगूबाई को डिफेम नहीं ग्लोरिफाई किया गया है

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मुंबई2 दिन पहलेलेखक: अमित कर्ण

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सजंय लीला भंसाली की वकील नौमी चंद्रा और सान्या दुआ।

इस शुक्रवार को रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म को रिलीज मामले में तो राहत दे दी है। साथ ही गंगूबाई के कथित एडॉप्टेड सन बाबूजी रावजी शाह के लिए कानूनी दरवाजे खुले हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट में पूरे मामले पर दो दिनों तक बहस हुई। कोर्ट में भंसाली के पक्ष को टीएमटी लॉ प्रैक्टिस ने रिप्रजेंट किया। टीएमटी के अभिषेक मल्होत्रा, नौमी चंद्रा और सान्या दुआ ने कोर्ट में मामला हैंडल किया।

केस ट्रायल लायक है कि नहीं: नौमी
दैनिक भास्कर से बातचीत में नौमी चंद्रा ने भंसाली के पक्ष में फैसला आने की वजहें सिलसिलेवार तौर पर बताईं। नौमी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने अभी फिल्म की रिलीज पर स्टे की अर्जी को रिजेक्ट किया है। आगे मुंबई हाईकोर्ट के विजडम पर छोड़ा है कि गंगूबाई के एडॉप्टेड सन बाबूजी रावजी शाह की बाकी अपील पर केस को ट्रायल के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में भेजना नहीं है। इस तरह बाबूजी शाह को रिलीज रुकवाने में सफलता नहीं मिली, मगर वह आगे अपनी कथित मां को मेकर्स और राइटर एस हुसैन जैदी के द्वारा डिफेम किए जाने और कंपनशेन के मामले को लेकर वापस मुंबई हाई कोर्ट मूव कर सकते हैं। वहां अब हाई कोर्ट पर डिपेंड होगा कि यह केस ट्रायल के लायक है भी कि नहीं।

ठोस सबूत नहीं थे
इस केस में फैसला तीन मुख्य कारणों से भंसाली के फेवर में गया। नौमी बताती हैं, बाबूजी रावजी शाह अपने एडॉप्टेड होने के ठोस सबूत नहीं दे पाए। वो मजबूती से कोर्ट को नहीं बता सके कि उन्हें किस ऐज में एडॉप्ट किया गया। उनके पास लीगल प्रूफ के तौर पर सिवाय राशन कार्ड की फोटो कॉपी के अलावा कुछ नहीं है। उस पर गंगूबाई हरजीवन दास का नाम ऊपर था। बाकी और भी नामों में से बाबजूी रावजी शाह का नाम था। उस फोटोकॉपी के अलावा एडॉप्टेड सन के पास कोई और कागजात नहीं थे। उसे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने ही प्राइमा फेसिया खारिज कर दिया था। अगर केस ट्रायल स्टेज में जाता तो राशन कार्ड की ओरिजिनल कॉपी दिखानी पढ़ती।

पिछले साल बी जुलाई में बाबूजी की याचिका हुई है खारिज
दरसअल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने पिछले साल ही मेकर्स के मद्देनजर सीपीसी के ऑर्डर सेवन रूल एलेवेलन की एप्लीकेशन को अलाऊ कर दिया था। उसके तहत बाबूजी रावजी शाह की अर्जी खत्म हो गई थी। तब वो बॉम्बे हाई कोर्ट गए। वहां अपनी अपील फाइल की और फिल्म की रिलीज पर स्टे मांगा। जब तक अपील की सुनवाई पूरी न हो, तब तक फिल्म की रिलीज स्टे कर दो। उस पर पिछले साल जुलाई में हाई कोर्ट ने रिलीज पर स्टे वाली अर्जी खारिज कर दी। मेन अपील जरूर पेंडिंग रहेगी। अगर अपील पर हियरिंग होती है और बाबूजी रावजी शाह जीतते हैं तो उनका केस वापस ट्रायल कोर्ट में जाएगा।

इससे गंगूबाई को ग्लोरिफाई किया गया है
पिछले साल हाई कोर्ट में स्टे पर हार मिलने पर बाबूजी रावजी शाह सुप्रीम कोर्ट में आकर एसएलपी लगाई। भंसाली के वकीलों ने दलील दी कि मूवी रिलीज के ठीक दो दिन पहले बाबजूी रावजी सुप्रीम कोर्ट आए हैं। महज राशन कार्ड की फोटो कॉपी के बेसिस पर खुद को उनकी जायज औलाद बता रहें हैं, जो कोर्ट में स्टैंड नहीं करेगा। साथ ही इस फिल्म में गंगूबाई को डिफेम नहीं किया जा रहा। उन्हें तो इसमें ग्लोरिफाई किया गया है। लिहाजा उनके अगेंस्ट डिफेमेशन का केस भी नहीं बन रहा है। सबसे बड़ी बात कि यह एस हुसैन जैदी की किताब पर बेस्ड है, जिन्होंने काफी रिसर्च की है और किताब लंबे समय से पब्लिक डोमेन में है।

मरे इंसान पर डिफेमेशन का केस नहीं होता
सिविल लॉ में यह प्रोविजन है कि मरे इंसान के बारे में डिफेमेशन केस नहीं बनता। साथ ही बाबूजी रावजी शाह भी डिफेम नहीं हो सकते, क्योंकि उनका नाम डायरेक्टली किताब या फिल्म में है ही नहीं? ऐसे में यहां डिफेमेशन का मामला है ही नहीं। असल में जबकि एस हुसैन जैदी के अलावा नॉर्मल सोशल मीडिया के लिटरेचर में भी गंगूबाई के बारे में वेल नोन फैक्ट है कि वो कमाठीपुरा रहती थीं और क्या थीं? पिक्चर में जलील करने के लिए नहीं बताया गया है कि वो प्रॉस्टिट्यूशन में थीं। बल्कि कैसे उन्होंने अपनी परिस्थितियों के बावजूद सेक्स वर्कर्स के उत्थान के लिए बहुत काम किया। ऐसे में कोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर स्टे नहीं लगाया। हां, अब बाबूजी रावजी शाह वापस हाईकोर्ट में जाकर अपनी अपील को ट्रायल में ले जा सकते हैं। वहां सुनवाई करवा सकते हैं।

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