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महिला दिवस पर खास बातचीत: शरवरी वाघ ने कहा-आज लड़कियों के किरदार इतने अच्छे से लिखे जा रहे हैं, देखकर गर्व महसूस होता है

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मुंबई32 मिनट पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय

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‘बंटी और बबली-2’ फेम एक्ट्रेस शरवरी वाघ इन दिनों अपने काम को निखारने में लगी हुई हैं। अब दैनिक भास्कर से खास बातचीत में शर्वारी वाघ ने विमेंस-डे पर बात की है। साथ ही उन्होंने अपने करियर और अपकमिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़ी कुछ बातें भी शेयर की हैं।

आप कड़े संघर्ष के बाद लीड रोल तक पहुंची हैं, विमेंस-डे पर क्या संदेश देना चाहेंगी?
अब वक्त बदल रहा है। अब वक्त यह है कि लड़कियों और महिलाओं को अपनी जिंदगी सम्मान के साथ जीने का हक मिल रहा है। अपना मनचाहा प्रोफेशन चूज करने का हक मिल रहा है, आगे बढ़ने का हक मिल रहा है। दुनिया में बहुत सारे इग्जाम्पल है, जिन्होंने बहुत सारे बड़े-बड़े काम किए हैं। उनसे प्रेरणा लेते हुए हम सभी को अपने प्रोफेशनल फील्ड में आगे बढ़ने के लिए हिम्मत रखनी चाहिए और मेहनत करनी चाहिए।

क्या आपको लगता है कि बॉलीवुड इंडस्ट्री में फीमेल से ज्यादा मेल को इंपोर्टेंस दी जाती है?
मुझे नहीं लगता कि यहां पर मेल एक्टर को इंपोर्टेंस ज्यादा दी जाती है। मुझे लगता है कि जिस किस्म की स्क्रिप्ट बनती है, उसके ऊपर डिपेंड करता है कि एक्टर का ज्यादा रोल है या फिर एक्ट्रेसस का ज्यादा रोल है। अब आप हालिया रिलीज फिल्म गहराइयां देख लीजिए। उसमें इतनी खूबसूरती से दीपिका पादुकोण का परफॉर्मेंस बहुत बढ़िया रहा है। इसका कारण यह भी रहा है कि उन्हें एक ऐसी स्क्रिप्ट मिली, जहां पर उनका किरदार इतना खूबसूरती से लिखा हुआ था। इसी तरह तापसी पन्नू की फिल्म थप्पड़ है। अभी आलिया भट्‌ट की गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म देखकर आई हूं। उसमें आलिया भट्‌ट का दमदार किरदार है। मैं कहूंगी कि एक्टर और एक्ट्रेस को दर्जा उतना ही मिलता है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि किस के लिए स्क्रिप्ट लिखी जाती है।

फीमेल सेंट्रिक कैरेक्टर वाली फिल्मों के बारे में क्या कहेंगी?
आजकल हमें फीमेल सेंट्रिक फिल्में हमें ज्यादा देखने को मिल रही है। मैं खुशनसीब हूं कि इस समय इंडस्ट्री में हूं, जब ऐसी फिल्में बन रही हैं। आज लड़कियों का किरदार इतना अच्छे से लिखा जा रहा है, इसे देखकर मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में यह बहुत बड़ा चेंज शिफ्ट हो रहा है। मैं अपने आपको खुशनसीब मानती हूं कि इस दौरान इंडस्ट्री में आई हूं, जब ऐसे किरदार कलाकारों के लिए लिखे जा रहे हैं।

मेल-फीमेल आर्टिस्ट के बीच क्या किसी चीज को लेकर डिफरेंट लगा?
मैंने अभी दो-तीन फिल्मों में काम किया है। मेरा जितना छोटा एक्सप्रीरियंस है, उसके आधार पर यही कहूंगी कि ऐसा कभी कोई अंतर नहीं लगा। अभी बंटी और बबली की है। अब इसके टाइटल में बंटी और बबली, दो लोगों का नाम है।

फिल्म इंडस्ट्री में फेमिनिज्म को लेकर क्या कुछ कहना चाहेंगी?
जैसे मैंने कहा कि गंगूबाई हो या फिर गहराइयां हो, यह उस तरीके की फिल्म है, जिसे करना चाहूंगी। औरतों ने भी बॉक्स ऑफिस पर आकर अच्छा प्रदर्शन किया है। ऐसे में मुझे लगता है कि भविष्य में मैं भी ऐसी फिल्में कर पाऊं।

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